टीईटी अनिवार्यता आदेश से पूरे मैकेनिज्म के कोलैप्स होने का खतरा - तमिलनाडु सरकार
टीईटी अनिवार्यता आदेश से पूरे मैकेनिज्म के कोलैप्स होने का खतरा - तमिलनाडु सरकार
TET Matter in Supreme Court:
तमिलनाडु सरकार ने हाल ही में आए सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिका दायर की है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने अध्यापकों के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) की योग्यता अनिवार्य किए जाने का आदेश सुनाया था।
राज्य सरकार ने पिटिशन में कहा है कि यह अनिवार्यता केवल उन शिक्षकों पर लागू होती है जिन्हें ऐक्ट के 1 अप्रैल 2010 से प्रभावी होने के बाद अधिसूचित मानकों के तहत नियुक्त किया गया था। याचिका में कहा गया है कि अगर आदेश को लागू हुआ तो पूरे मैकेनिज्म के कोलैप्स करने का खतरा है, जिसमें शिक्षकों का सामूहिक अयोग्य ठहरना और लाखों बच्चों को कक्षा शिक्षा से वंचित करना शामिल है।
उच्चतम न्यायालय के आदेश पर तमिलनाडु सरकार ने जताई आपत्ति
01 सितंबर 2025 को आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश में कहा गया था कि जिन शिक्षकों की सेवा अवधि में पांच वर्ष से अधिक समय बची है, उन सभी शिक्षकों को दो साल के भीतर टीईटी परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस आदेश में पुराने और नए दोनों ही शिक्षकों को शामिल किया गया था। तमिलनाडु सरकार का तर्क है कि 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों पर यह नियम लागू नहीं होना चाहिए क्योंकि उनकी नियुक्ति उस समय के प्रावधानों के अनुसार वैध रूप से की गई थी।
तमिलनाडु सरकार ने दायर रिव्यू याचिका में बताया कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम (RTE) की धारा 23(1) केवल भविष्य की नियुक्तियों से संबंधित है। वहीं, धारा 23(2) के अंतर्गत केंद्र सरकार को प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी को देखते हुए अस्थायी छूट देने का अधिकार दिया गया है। ऐसे में 5 साल के भीतर योग्यता हासिल करने की शर्त उन्हीं पर लागू की जानी चाहिए जिन्हें छूट की अवधि में नियुक्त किया गया था, न कि उन पर जिनकी नियुक्ति पहले ही वैधानिक रूप से हो चुकी है।
टीईटी अनिवार्यता आदेश से पूरे मैकेनिज्म के कोलैप्स होने का खतरा
तमिलनाडु राज्य सरकार ने दायर अपनी रिव्यू पेटीशन में बताया कि फिलहाल तमिलनाडु में 4,49,850 सरकारी शिक्षक कार्यरत हैं। इनमें से 3,90,458 शिक्षकों ने अब तक टीईटी परीक्षा उत्तीर्ण नहीं की है। यदि सुप्रीम कोर्ट का आदेश पुराने शिक्षकों पर भी लागू किया गया तो लाखों शिक्षकों की सेवाएं खतरे में पड़ सकती हैं। इससे लाखों विद्यार्थियों की पढ़ाई बाधित होगी और शिक्षा व्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।
सरकार ने यह भी तर्क दिया कि यह स्थिति न केवल शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन होगी बल्कि पूरे राज्य की शिक्षा प्रणाली में अस्थिरता ला सकती है। शिक्षकों की कमी के कारण कई विद्यालयों में कक्षाएं बाधित हो सकती हैं, जिससे ग्रामीण और पिछड़े इलाकों के छात्र सबसे अधिक प्रभावित होंगे।
पहले से नियुक्त शिक्षकों पर टीईटी लागू करना न्यायसंगत नहीं
तमिलनाडु सरकार ने स्पष्ट किया है कि शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना सरकार की प्राथमिकता है, लेकिन पहले से सेवा में कार्यरत शिक्षकों पर अचानक टीईटी लागू करना न्यायसंगत नहीं है। पुराने शिक्षकों ने उस समय की भर्ती नीतियों के अनुसार अपनी सेवाएं प्रारंभ की थीं और अब अचानक नई योग्यता की शर्तें थोपना उनके अधिकारों का हनन होगा।
सुप्रीम कोर्ट से स्पष्टीकरण की मांग
तमिलनाडु सरकार ने देश की शीर्ष अदालत से अनुरोध किया है कि वह यह स्पष्ट करे कि टीईटी पास करने की पांच साल की समय सीमा केवल 1 अप्रैल 2010 के बाद नियुक्त शिक्षकों पर ही लागू होनी चाहिए। पुराने शिक्षकों को इस श्रेणी में लाना न केवल अनुचित होगा, बल्कि इससे लाखों शिक्षकों के रोजगार पर संकट आ सकता है और पूरे शैक्षणिक तंत्र पर नकारात्मक असर पड़ेगा।
यह याचिका न केवल तमिलनाडु बल्कि पूरे देश के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के अंतिम फैसले का असर भारत के लगभग 98 लाख शिक्षकों पर पड़ेगा। यदि अदालत पुराने शिक्षकों को भी इस नियम के दायरे में लाती है, तो कई राज्यों को बड़े पैमाने पर शिक्षक भर्ती, प्रशिक्षण और पुनर्गठन की प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा।
अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट के आगामी फैसले पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि 2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों पर टीईटी की अनिवार्यता लागू होगी या नहीं। इस निर्णय से न केवल शिक्षकों का भविष्य बल्कि देश की पूरी शिक्षा व्यवस्था प्रभावित होने वाली है।
2010 से पहले नियुक्त शिक्षकों को मिल सकती है टीईटी से राहत !
