सर्वोच्च न्यायालय में प्रत्यक्ष Vires Challenge: संवैधानिक वैधता को चुनौती देने का अधिकार : ✍️ अविचल जी कलम से
सर्वोच्च न्यायालय में प्रत्यक्ष Vires Challenge: संवैधानिक वैधता को चुनौती देने का अधिकार : ✍️ अविचल जी कलम से
भारत के सर्वोच्च न्यायालय में किसी अधिनियम, नियम, विनियम, अधिसूचना या सरकारी आदेश की संवैधानिक वैधता को प्रत्यक्ष रूप से चुनौती दी जा सकती है। इसे ही विधिक भाषा में “vires challenge” कहा जाता है। “Vires” शब्द का आशय है – किसी अधिनियम अथवा नियम की वह विधिक शक्ति (legal competence) जिसके अंतर्गत वह बनाया गया है। यदि कोई अधिनियम या नियम संविधान अथवा मूल अधिनियम द्वारा प्रदत्त अधिकार-सीमा से बाहर जाकर निर्मित किया गया हो, तो उसे “ultra vires” अर्थात् अधिकार से परे और असंवैधानिक कहा जाता है। इसके विपरीत, यदि वह अपने अधिकार क्षेत्र में रहते हुए बनाया गया है तो उसे “intra vires” अर्थात् वैध माना जाता है।
सर्वोच्च न्यायालय में प्रत्यक्ष vires challenge प्रायः अनुच्छेद 32 के अंतर्गत किया जाता है। जब किसी क़ानून या नियम से मौलिक अधिकारों का उल्लंघन होता है, तब पीड़ित पक्ष सीधे सर्वोच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटा सकता है। यह न्यायालय का मूल अधिकार क्षेत्र है और इस कारण से इसे “direct vires petition” भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ विशेष परिस्थितियों में अनुच्छेद 131, 136 आदि के अंतर्गत भी किसी प्रावधान की वैधता पर प्रश्न उठाया जा सकता है।
हालाँकि, केवल सर्वोच्च न्यायालय ही नहीं, बल्कि उच्च न्यायालय भी अनुच्छेद 226 के तहत vires challenge सुन सकता है। सामान्यतः अधिकांश याचिकाएँ पहले उच्च न्यायालय में दायर की जाती हैं, परंतु जब मामला सीधे मौलिक अधिकारों से जुड़ा हो और पूरे देश को प्रभावित करता हो, तब सर्वोच्च न्यायालय में प्रत्यक्ष याचिका स्वीकार की जाती है।
भारतीय न्यायिक इतिहास में अनेक उदाहरण मिलते हैं जहाँ सीधे vires challenge किया गया। केशवानंद भारती मामले में संविधान संशोधन की वैधता को सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई और “मूल संरचना सिद्धांत” प्रतिपादित हुआ। शायरा बानो मामले में तीन तलाक की प्रथा को संविधान-विरुद्ध घोषित किया गया। इसी प्रकार शिक्षा के अधिकार, राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) और अनेक अधिनियमों की वैधता भी सीधे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी गई।
“Vires challenge” का विधिक तात्पर्य यह है कि याचिकाकर्ता न्यायालय से यह निवेदन करता है कि विवादित अधिनियम, नियम अथवा अधिसूचना संविधान के प्रावधानों या विधि द्वारा प्रदत्त अधिकारों से परे जाकर बनाई गई है और इस प्रकार यह असंवैधानिक है। याचिका में सामान्यतः यह कहा जाता है कि “impugned प्रावधान मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है तथा यह ultra vires संविधान है।”
इस प्रकार निष्कर्षतः कहा जा सकता है कि सर्वोच्च न्यायालय में प्रत्यक्ष रूप से vires मुकदमा दायर किया जा सकता है, परंतु इसका प्रयोग सामान्यतः उन्हीं परिस्थितियों में किया जाता है जब मामला सीधे मौलिक अधिकारों के हनन से संबंधित हो और उसका प्रभाव समग्र राष्ट्र पर पड़ता हो। अन्यथा व्यावहारिक रूप से पहले उच्च न्यायालय का मंच अपनाया जाता है।
अविचल