क्या दंडित होने पर एक सरकारी कर्मचारी को नौकरी से हटाया जा सकता है? देखें उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय

क्या दंडित होने पर एक सरकारी कर्मचारी को नौकरी से हटाया जा सकता है? देखें उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय

संपत्ति के अलावा, कोर्ट-कचहरी में कई मामले हैं, जिनमें सरकारी कर्मचारी भी शामिल होते हैं। हाल ही में, एक मामले में, उच्च न्यायालय ने सरकारी कर्मचारियों के बारे में एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। 

हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि अगर किसी सरकारी कर्मचारी को किसी मामले में सजा हो जाती है, तो क्या उसे नौकरी से हटाया जा सकता है? आइए हाईकोर्ट द्वारा दिए गए इस फैसले के बारे में विस्तार से जानते हैं।

इलाहाबाद हाईकोर्ट का फैसला

हाल ही में एक मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों पर एक बड़ा निर्णय सुनाया है। माननीय कोर्ट ने स्पष्ट किया कि अगर किसी सरकारी कर्मचारी को किसी अपराध में सजा हो जाती है, तो सिर्फ इस आधार पर उसे नौकरी से नहीं हटाया जा सकता। साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि बिना विभागीय जाँच किए किसी कर्मचारी को पद से हटाने की कार्रवाई नहीं की जा सकती।

हाईकोर्ट ने उच्चतम न्यायालय के निर्णय का हवाला

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के एक पुराने फैसले का संदर्भ देते हुए यह आदेश पारित किया। कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 311(2) के तहत किसी भी सरकारी कर्मचारी को बिना उचित जाँच के नौकरी से नहीं निकाला जा सकता और न ही उसके पद को घटाया जा सकता है। इसी के तहत, हाईकोर्ट ने कानपुर देहात के एक सरकारी स्कूल में सहायक शिक्षक की बर्खास्तगी को अवैध घोषित करते हुए रद्द कर दिया।

मामले की पूरी जानकारी

इस मामले में, एक सहायक शिक्षक को दहेज हत्या के आरोप में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। सजा होते ही जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) ने उसे नौकरी से बर्खास्त कर दिया। हालाँकि, हाईकोर्ट ने अनुच्छेद 311(2) को ध्यान में रखते हुए इस बर्खास्तगी को रद्द कर दिया और अधिकारियों को दो महीने के भीतर नया आदेश पारित करने का निर्देश दिया। यह फैसला याचिकाकर्ता मनोज कटियार की याचिका पर सुनाया गया। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता की नौकरी में बहाली नए आदेश पर निर्भर करेगी।

शिक्षक को क्यों बर्खास्त किया गया था?

दरअसल, याचिकाकर्ता की नियुक्ति 1999 में प्राथमिक विद्यालय में सहायक शिक्षक के पद पर हुई थी। 2017 में उनकी पदोन्नति भी हुई थी, लेकिन इसी दौरान उन पर दहेज हत्या का मामला दर्ज किया गया। इस मामले में साल 2009 में उन्हें दोषी पाया गया और उम्रकैद की सजा सुनाई गई। सजा होते ही बीएसए ने उन्हें नौकरी से बर्खास्त कर दिया, जिसे अब हाईकोर्ट ने अवैध ठहराया है। इस फैसले से सरकारी कर्मचारियों के अधिकारों को मजबूती मिली है और यह स्पष्ट हुआ है कि बिना विभागीय जाँच के किसी को भी नौकरी से नहीं हटाया जा सकता।

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