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पुरानी पेंशन अब मुमकिन नहीं: पेंशन और एनपीएस सुधार समीक्षा समिति अध्यक्ष - टी.वी. सोमनाथन

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पुरानी पेंशन अब मुमकिन नहीं: पेंशन और एनपीएस सुधार समीक्षा समिति अध्यक्ष - टी.वी. सोमनाथन

वित्त सचिव टीवी सोमनाथन ने कहा है कि पुरानी पेंशन व्यवस्था अब वित्तीय रूप से मुमकिन नहीं है और इसे लाना देश के उन नागिरकों के लिए नुकसानदेह होगा, जो सरकारी नौकरी में नहीं हैं।


सोमनाथन ने कहा, एक वित्तीय अधिकारी के नाते कह रहा हूं, आखिरी फैसला सरकार करेगी। पुरानी पेंशन स्कीम वित्तीय तौर पर व्यावहारिक नहीं है क्योंकि साधारण नागरिकों पर इसका नकारात्मक असर पड़ेगा। हालांकि हम कर्मियों के लिए कुछ बेहतर कर सकते हैं वित्त मंत्रालय ने पिछले साल सरकारी कर्मचारियों के लिए पेंशन योजना की समीक्षा करने और राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली में जरूरत के हिसाब से बदलाव का सुझाव देने के लिए वित्त सचिव सोमनाथन की अगुवाई में एक समिति का गठन किया था।

उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद जो भी पेंशन मिले उसमें महंगाई से निपटने का भी कुछ प्रावधान यानी डीए (महंगाई भत्ता) जैसी कोई व्यवस्था चाहिए। ऐसा नहीं होने पर पेंशन का वास्तविक मूल्य घटता जाएगा।

नई कर प्रणाली बदली सोच का नतीजा

वित्त सचिव ने सोमनाथन ने कहा , नई कर प्रणाली को लेकर कहा कि सरकार अब इस सोच पर काम नहीं कर रही है कि टैक्स छूट के लिए निवेश करो। टैक्स बचाने के लिए कई काम होते थे। अब यह नागरिक पर छोड़ देना चाहिए कि वह कहां निवेश करना चाहता है।

एनपीएस पर बनी समिति का काम पूरा नहीं हुआ

सोमनाथन ने कहा कि एनपीएस को लेकर कर्मचारी संगठनों और राज्य सरकारों से कुछ सार्थक बातचीत हुई है। सोमनाथन ने कहा, एनपीएस पर बनी समिति का काम अभी पूरा नहीं हुआ है। हमने इस बारे में कर्मचारी संगठनों और राज्य सरकारों से बातचीत की है।

अगर किसी ने पूरी नौकरी यानी 30 साल तक काम नहीं किया है, उसके लिए कुछ न्यूनतम पेंशन तय की जाए। ये ऐसे मामले हैं, जिस पर हमें निर्णय लेना है।

इस मुद्दे पर सरकार की चिंता से अवगत कराया

वित्त सचिव ने कहा, पुरानी पेंशन योजना लागू होने पर सरकारी बजट का अधिकतर हिस्सा सरकारी कर्मचारी के वेतन और पेंशन में जाएगा और सरकार का काम यह हो जाएगा कि टैक्स जुटाओ और सरकारी कर्मचारियों को दे दो। सरकार का काम यह नहीं है। पेंशन का भार भविष्य की पीढ़ी पर पड़ेगा। बाद की सरकार पर पड़ेगा। हालांकि एनपीएस को लेकर कर्मचारियों की जो न्यूनतम आशा है, उस पर अमल हो सकता है, हालांकि उससे भी लागत बढ़ेगी।

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