इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि धोखाधड़ी और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर हासिल की गई सरकारी नौकरी को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि ऐसी नियुक्ति न केवल अवैध है, बल्कि पूरी चयन प्रक्रिया की साख को भी प्रभावित करती है। यह फैसला न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान की पीठ ने मिर्जापुर के कृष्णकांत द्वारा दाखिल याचिका पर सुनवाई के बाद दिया। याची ने अपनी सेवा समाप्ति को चुनौती दी थी। कृष्णकांत की नियुक्ति मार्च 1998 में मृतक आश्रित कोटे के तहत सहायक अध्यापक के रूप में हुई थी। करीब बीस साल तक सेवा देने के बाद उनकी छोटी बहन स्नेहलता ने मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराई कि उन्होंने फर्जी दस्तावेजों के जरिए नौकरी हासिल की है।
विभागीय जांच में आरोप सही पाए गए, जिसके बाद जुलाई 2025 में उनकी सेवा समाप्त कर दी गई। याची ने इस कार्रवाई को कोर्ट में चुनौती दी, लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी दलीलों को अस्वीकार कर दिया। अदालत ने कहा कि जब आधार ही छल पर टिका हो, तो ऐसे नियोजन को किसी भी प्रकार का संवैधानिक संरक्षण नहीं मिल सकता।
कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि सरकारी व्यवस्थाओं में ईमानदारी सर्वोच्च मूल्य है और फर्जी दस्तावेजों के माध्यम से नौकरी प्राप्त करने वाले व्यक्ति के साथ कोई सहानुभूति नहीं बरती जा सकती।


Social Plugin