उत्तर प्रदेश के बेसिक शिक्षा विभाग ने शिक्षकों की उपस्थिति को लेकर नई सख्त गाइडलाइन जारी करने की तैयारी कर ली है। यह फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के निर्देशों के बाद लिया गया है, जिसमें 30 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई तय है। कोर्ट ने तिंदवारी (बांदा) की प्रधानाध्यापिका इंदिरा देवी की याचिका पर राज्य के मुख्य सचिव, अपर मुख्य सचिव (बेसिक शिक्षा) और अन्य अधिकारियों को आदेश दिया था कि वे स्कूलों में अध्यापकों की नियमित उपस्थिति सुनिश्चित करें।
हाईकोर्ट ने डिजिटल अटेंडेंस लागू करने और जिले व ब्लॉक स्तर पर टास्क फोर्स गठित करने का भी निर्देश दिया था, ताकि स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति में अनुशासन बन सके। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि शिक्षकों की गैरमौजूदगी से बच्चों के नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा अधिकार (RTE) कानून 2009 का उल्लंघन होता है और यह गरीब बच्चों के शिक्षा के मौलिक अधिकारों की अनदेखी है।
बेसिक शिक्षा विभाग ने टैबलेट के माध्यम से हाजिरी दर्ज करने का इंतजाम किया है, लेकिन आंकड़ों के अनुसार प्रदेश के 1,32,643 स्कूलों में से 6,12,642 शिक्षकों में से महज 100 के करीब शिक्षकों ने ही ऑनलाइन हाजिरी लगाई है। वहीं, कक्षा 1 से 8 के लगभग 1,28 लाख विद्यार्थियों में केवल 16.79 प्रतिशत की उपस्थिति ऑनलाइन दर्ज हो पाई है।
साथ ही, शासन ने शहरी क्षेत्रों में शामिल नए स्कूलों के शिक्षकों की तैनाती की प्रक्रिया भी तेजी से करने का निर्णय लिया है। उन स्कूलों में कार्यरत अध्यापकों को नगरीय शिक्षकों के संवर्ग में रखा जाएगा, हालांकि उनकी वरिष्ठता सूची में सबसे नीचे होगी। इस दिशा में शासन ने बेसिक शिक्षा निदेशक को निर्देश दिए हैं कि वे शिक्षकों से विकल्प लेकर आवश्यक तैनाती करें।
यह कदम शिक्षक उपस्थिति को पारदर्शी और अनुशासित बनाने के साथ-साथ बच्चों के शिक्षा अधिकारों की रक्षा के लिए आवश्यक माना जा रहा है।


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