विद्यालयों को मर्ज करना किसी अभिशाप से कम नहीं, शिक्षा से पुनः वंचित हो जाएगा समाज का एक बड़ा वर्ग
विद्यालयों को मर्ज करना किसी अभिशाप से कम नहीं, शिक्षा से पुनः वंचित हो जाएगा समाज का एक बड़ा वर्ग
दलित, पिछड़ा वर्ग, शोषित वंचित वर्ग के बच्चे पढ़ लिख न सकें इसलिए स्कूल बंद किए जा रहे हैं। याद है मुझे जब मैं नानी के घर जाता था तो वहां प्राथमिक विद्यालय नहीं था, वहां गांव के बच्चे निरक्षर ही रह जाते थे, विशेषतः बेटियां तो कई दशकों तक नहीं पढ़ सकी। जब अटल बिहारी बाजपेई जी देश के प्रधानमंत्री बने तो सर्व शिक्षा अभियान के अंतर्गत हर गांव विद्यालय खुले जिसके लिए गांव के लोगों ने संघर्ष शुरू किया और अंततः लंबे कई दशकों के संघर्ष के बाद विद्यालय गांव में खुल गया । गांव के बच्चे पढ़ाई करने लगे, जो बच्चे पड़ोस के गांव में 3 किलोमीटर पैदल जाकर नहीं पढ़ पा रहे थे वे अब अपने गांव में गर्व से शिक्षा ले रहे थे । इससे अधिकांश लाभ किसे हुआ ? बेटियों को, पिछड़ा वर्ग, शोषित वर्ग वंचित वर्ग को हुआ। वे सही को सही और गलत को गलत पहचानने लगे थे लेकिन भला सत्ता को कहां कभी पसंद आया है कि सत्ता के गिरेबान में हाथ डालकर आम जनता अपना हक मांगे, लार्ड मैकाले ने भी यही किया था। अपने मन मुताबिक नियम बनाए और देश की दिशा को बदल दिया, इससे हम दशकों तक गुलामी की जंजीरों में जकड़ गए।
आज सर्व शिक्षा अभियान के पुराने आदेशों को पढ़ रहा था तो उसमें मेरी नजर कुछ आंकड़ों पर पड़ी जिसमें तत्कालीन एक दूरदर्शी प्रधानमंत्री की जिजीविषा साफ देखी जा सकती है। यूडीआईएसई 2015-16 के अनुसार देश में 10,76,994 विद्यालय संचालित हो रहे थे जिसमें 2002-03 से 2015-16 के मध्य देश में 1,62,237 प्राथमिक विद्यालय और 78,903 उच्च प्राथमिक विद्यालय खोले गए है। जिसमें प्राथमिक स्तर पर अनुसूचित जाति वर्ग के बच्चों का नामांकन 2010-11, 19 प्रतिशत था जोकि 2015-16 में बढ़कर लगभग 20 प्रतिशत पर पहुंच गया। वही अनुसूचित जनजाति वर्ग के बच्चों का नामांकन 10.35 प्रतिशत हो गया।
देखने वाला विषय है आज भी वंचित शोषित वर्ग आज भी शिक्षा के लिए संघर्षरत है उसको दरकिनार करते हुए विद्यालयों को बंद कर देने की कवायद पुनः शोषण की ओर एक कदम है। आम जनता इसके परिणाम अभी नहीं समझ पा रही है लेकिन आने वाले वर्षों में देश में अशिक्षा के आंकड़े पुनः तेजी से बढ़ेंगे, यह कहने में दो राय नहीं हैं।
दलित, पिछड़ा वर्ग, शोषित वंचित वर्ग के बच्चे पढ़ लिख न सकें इसलिए स्कूल बंद किए जा रहे हैं।
अंकुर त्रिपाठी विमुक्त शाहजहांपुर
उपरोक्त लेख में लेखक के स्वतंत्र विचार हैं।